धन नहीं, धन का त्यागी चाहिए
सन 1929 में असहयोग आन्दोलन प्रारंभ किया गया। उस समय देशबन्धु चितरंजनदास देश में अद्वितीय प्रतिभाशाली बैरिस्टर थे। महात्मा गाँधी ने देशबन्धु से देश सेवा के लिए वकालत छोड़ देने का आग्रह किया। तब दास बन्धु ने उत्तर दिया- “आप मुझे वकालत करने दीजिए। उसकी 50 हजार रुपया से अधिक मासिक आमदनी में पूरी की पूरी काँग्रेस को दे दिया करूगा।” तब गाँधी जी बोले – “हमें रुपया नहीं चाहिए, रुपयों को लात मारने वाला त्यागी व्याक्ति चाहिए। तुम सा त्यागी पाकर हम जितना चाहेंगे, उतना रुपया पा सकेंगे।” दास बाबू ने गाँधी जी की बात मान ली।