पुरूषार्थ की विजय
टालस्टाय बड़े सवेरे टहलकर घर वापस आये ही थे कि एक हट्टे कट्टे युवक ने सहायता की भीख माँगी। बोला-मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं हैं। मेरी मदद कीजिए। टालस्टाय ने उस युवक को नीचे से ऊपर तक देखा तथा पूछा-क्या सचमुच तुम्हारे पास फूटी कौड़ी भी नहीं हैं? युवक बोला-सच कहता हूँ साहब, यदि मेरे पास कुछ भी होता तो मैं आपको कष्ट देने नहीं आता।
टालस्टाय वराण्डे में जिस बैंच पर बैठकर सुस्ता रहे थे, उस पर से उठकर उस युवक के पास आ गये तथा उसकी आँखों पर हाथ रखते हुए पूछा यह क्या है? युवक बोला-आँखे हैं साहब ! अच्छा याद आया-टालस्टाय ने कहा-मेरा एक मित्र आँखे खरीदता है, दोनों आँखों के बीस हजार रुपया देगा। जाओ आँखे बेच आओ, फिर तुम्हें जीवन भर किसी के आगे हाथ पसारना न पडे़गा। नहीं साहब, युवक बोला-आँखे नहीं रहेंगी तो मैं अन्धा हो जाऊँगा। टालस्टाय ने कहा-तुम्हारे पास हजारों रुपये की आँखे, हाथ-पाँव हैं,फिर तुम भीख माँगते हो। काम करो, पुरूषार्थ की सदैव विजय होती है। काम करने के बाद तुम्हें किसी के आगे हाथ पसारना न पड़ेगा। युवक पर कहे हुए का बड़ा असर हुआ। उद्यम के बल पर वह एक विशिष्ट व्यक्ति बना।