आत्मा को चमका दो
एक बार एक राजा के पास दो चित्रकार पहुँचे। एक था चित्रकार और दूसरा था विचित्रकार। दोनों ही चित्रकार थे, पर विचित्रकार विशेष कलाकारी जानता था ।राजा ने दोनों को अपनी अपनी योग्यता प्रकट करने का अवसर प्रदान किया। एक भवन की आमने -सामने की दीवारें उन्हें चित्रकारी के लिए दे दी गयी और बीच मे परदा लगा दिया गया। चित्रकार ने अपनी दीवार को चित्रित करना शुरु कर दिया। उसकी चित्रकला बेजोड़ थी। एक से एक बढ़िया चित्र प्रस्तुत करके उसने दीवार को चित्रित कर दिया। उसने ऐसे चित्र बनाये कि उन्हें देखकर कोई भी वाह, वाह कह दे। विचित्रकार तो बस विचित्र ही था। उसने उस दीवार को घिसना शुरु कर दिया। इतना घिसा कि किसी को भी उसमें अपनी शक्ल दिखाई दे। वह दीवार शीशे की तरह चमकदार हो गयी। उसने बस इतना ही किया। किसी प्रकार की चित्रकारी उसने नहीं की।
काम पूरा होने पर राजा का आगमन हुआ। पहले उसने चित्रकार की कला का अवलोकन किया। उसके हिस्से की दीवार देखकर वह प्रसन्न हो गया। दीवार पर अनेक दृश्य चित्रित किये गये थे, जो बिल्कुल सजीव दिखाई देते थे। फिर राजा ने परदा हटवाया पर कोई दृश्य चित्रित नहीं था, पर उसमे बहुत कुछ बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था। सामने वाली दीवार पूरी की पूरी उसमें प्रतिबिंबित हो रही थी। और उस पर के दृश्य इस दीवार मे हूबहू दिखाई दे रहे थे, बल्कि दीवार के चार हाथ भीतर दिखाई दे रहे थे। विचित्रकार की इस कला पर राजा मुग्ध हो गया। उसे पुरस्कृत किया गया। बस यही काम हमें करना है। ज्ञान को मात्र ज्ञाता बना दो, उसमें तीन लोक झलकने लग जायेंगे।